आख़िर ये मन क्यों रेत हुआ जा रहा | हिंदी कविता
आख़िर ये मन क्यों रेत हुआ जा रहा | हिंदी कविता – मानस मुकुल
क्या होता है जब मन रेत हुआ जा रहा होता
पढ़िए और अपने विचार रखिये
आख़िर ये मन क्यों रेत हुआ जा रहा | हिंदी कविता – मानस मुकुल
क्या होता है जब मन रेत हुआ जा रहा होता
पढ़िए और अपने विचार रखिये
बहुत दूर है मंज़िल – हिंदी कविता – मानस ‘समीर’ मुकुल – सवालों के शोर में क्या खुद की आवाज़ सुन पाओगे? बहुत दूर है मंज़िल…
मैंने तो बस – हिंदी कविता – मानस ‘समीर’ मुकुल – सबके पल गिने चुने हैं, सबके दिन गिने चुने हैं, तुमने कितने दिन चुने हैं?
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