आशिक़ी से Resign

आशिक़ी से Resign | हिंदी कविता

आशिक़ी से Resign banner

“तुम्हें Life में ज़रूर कोई बहुत अच्छा मिलेगा 
मुझसे भी अच्छा 
बस मैं इस जिंदगी के लिए नहीं बनी”
ये बोलके हर बार किसी ने कहा 
भैया आगे बढ़ो
इसलिए आशिक़ी से Resign

आगे बढ़ते बढ़ते 
इतना आगे आ गए
की अब बस एक रेलगाड़ी का platform 
बन के रह गए हैं 
गाड़ियां आती हैं
इश्क़ लड़ाती हैं
और फिर अपने गंतव्य पर 
निकल जाती हैं 
और, हमें हमेशा की तरह
वही अपने इश्क़ के साथ
छोड़ जाती हैं 
इसलिए आशिक़ी से Resign

उन्होंने कहा तुम प्यार से भाग रहे 
बिना बात रातों में जाग रहे 
तुम बाहर निकलते नहीं 
किसी से भी मिलते नहीं 
मैंने कहा जो इश्क़ के बाज़ार में 
रोज दुकान लगा बैठता हूँ 
ऐसे मूर्ख भी ढूंढने से मिलते नहीं 
इसलिए आशिक़ी से Resign

कुछ लोगों से जो इस बार मिला 
उनकी आँखों में प्यार कम
और दया का भाव ज्यादा मिला
मैं उन आँखों में कुछ खोजता रहा 
हलकी सी नमी, हल्का सा नशा टटोलता रहा 
पर तेरी आँखों में अपने अक्स को 
देखने के लिए तरसता रहा 
इसलिए आशिक़ी से Resign

जिन्हें मिलती हैं मोहब्बत 
जिनके मुक़म्मल होते हैं इश्क़
उन्हें बहुत मुबारक बाद 
हमारी दिल से दुआ है
तू रहे आबाद, तू रहे आबाद 
और जिनके हिस्से आयी रेगिस्तान की वीरानीयत
आओ साथ मिल कर करें 
आशिक़ी से Resign

तू अगर एक बार कहे 
तो मैं फिर से करा लूँगा दाख़िला
लौट आऊँगा तेरे लिए 
तुझसे दुबारा करने सुलह
थोड़ा और जलने 
थोड़ा और सुलगने 
लेकिन तब तक के लिए 
तेरी आशिक़ी से Resign

चलो अब Valentine का हफ्ता भी ख़त्म हुआ 
ना गुलाब आया ना Chocolate
ना hug मिली ना पप्पी 
बस मिली तो हल्की फुल्की दुआएँ
की कोई आएगा 
कोई तो ज़रूर है 
तुम्हारे लिए 
तो फिर अगले साल तक 
आशिक़ी से Resign 

अब न दिल टूटने का ख़तरा
न लगेगी मोहब्बत में चोट 
न बदलेंगे अकेले में करवट 
न करेंगे उसके online आने का wait
अकेले थे, अकेले हैं,
अकेले ही रहेंगे 
तो फिर काहे का load 
इसलिए कहता हूँ मेरे सिंगल भाइयों 
दे दो आशिक़ी से Resign

तुझे रोने को कन्धा दिया 
तेरे दर्द को मर्म 
तेरे हाथों में हाथ 
तेरे भावों को अपनी आवाज़ 
तेरे आंसुओं को अपनी कविता 
तेरी कहानी को अपने शब्द 
और अंत में एक तू ही ना समझा 
इसलिए आशिक़ी से Resign

तुझे प्यार करना मैंने सिखाया 
तेरे लिए इश्क़ का दीया जलाया 
तेरे हर कदम रखने से पहले 
ग़ुलाब बिछाये 
पर इसलिए नहीं की उनपे चल 
तू किसी और के घर चली जाये 
अब उन ग़ुलाबों को समेट कर 
उन ख्वाबों को सहेज कर 
निकल पड़े है फिर न कभी मुड़ने के लिए 
और कर दिया है आशिक़ी से Resign

मानस ‘समीर’ मुकुल

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8 Responses

  1. Wah khoob likha hai!!

  2. Haha sahi likha hai.. sab kuch kah kar resignation dena best hai

  3. Rashi Roy says:

    Itna honest resignation to maine apne pure HR career mein kabhi nahi dekha! Aashiqui ka loss hai, apna star performer retain nahi kar paya 😂

  4. Pr@Gun says:

    Wow, ya huyi na jara hatke poem… Great satire…
    But a pinch of ashiqui is harmless…

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